Tuesday, February 17, 2009

मेरी हालत

Meri Halat

कई दिनों से बहुत परेशां हूँ मैं
जिंदा सही ,मगर बेजान हूँ मैं

मेरी यह हालत मुझसे बयां नहीं होती ,
बेचैनी की यह हालत रवां नहीं होती

गफलत की जो पहले ,उसे मिटाने चला हूँ
अपने मर्ज़ की दवा अब मैं ढूंडने चला हूँ

दे दवा कुछ ऐसी मुझे सुकून मिल जाए
दर्द भी न हो चैनो -आराम मिल जाए

नब्ज़ जो मेरी देखी तो मुझे पागल करार दिया
जुनूने-मोहब्बत को बेमिसाल करार दिया

मेरे इस पागलपन को प्यार कहते हैं ,
इस मर्ज़ की दवा को जानेबहार कहते हैं

संदीप चटर्जी

Sunday, February 15, 2009

वो रात

वो रात भी बड़ी अजीब थी ,
मेरे ख्यालों में ही सही
तू मेरे बहुत करीब थी

सोचा सारी दुनिया सोई है
तू भी शायद सोई होगी
मेरे ख्यालों में डूबकर
कहीं खोयी होगी

देखा चौखट तेरा
रौशनी का सैलाब नज़र आया
बेचैनी उधर भी है ,यही सोचकर
दिल को समझाया

नम आंखों ने दिल को
कह दी यह बात
कोई तो ऐसा मिला ,
मेरे ख्यालों में गुज़रे जिसकी रात

अचानक जो आँख लगी तो
ख़ुद को कहीं और पाया
तू तो थी वहां पर
नज़र कोई और आया

आँख खुली तो सोचा
शायद कोई बुरा सपना था
जागे मेरे ख्यालों में जो सारी रात
वो मेरा अपना था

एक कदम आगे चला तो
कुछ और नज़र आया
जिसको समझा था खुदा ,
निकला बेदर्द इंसान का साया

संदीप चटर्जी

( This poem was written in one sitting and I would refine it in due course )Chatterjee

Tuesday, February 10, 2009

एक कहानी

(खंड एक )
एक था राजा , एक थी रानी ,प्यार की ये अजब कहानी
दिलवालों की न्यारी बातें ,सुनो सुनो मेरी ज़बानी

राजा था जब राजकुमार , प्यार मोहब्बत कोशों दूर
संगीत का वो था अभिलाषी , दर्द भरे थे उसके सुर

राजा की आवाज़ कों सुन ने , लोग बड़े थे बेकरार
गीत मिले मनमीत मिले , सब के दिल में यही करार

इन लोगो में एक थी विदुषी , पसंद आ गए राजकुमार
हे भगवान् मुझको मिलवा दे, रब की करने लगी गुहार

ऐसा भी पल आया इक दिन , जब दोनों कुछ आए पास
संग संग गाया इक सुर में ,मिलने की कुछ जागी आस

विदुषी के संगीत सुरों में राजा मुग्ध हो गए अपार
एक पल राजा ने यह सोचा क्या मुझको है इससे प्यार

विद्या वाणी दोनों पाकर राजा ने कर लिया विचार
यही बनेगी पटरानी अब,क्यों घुमु सारा संसार

चट मंगनी पट ब्याह हुया और रानी आ गई राजा घर
तब राजा ने सोच लिया यह , मैं गाऊंगा अब जी भर

संदीप चटर्जी

Saturday, February 7, 2009

ख्वाब और हकीक़त

ख्वाब तो ख्वाब हैं आखिर , हकीक़त हो नहीं सकते
ख्वाब गर टूट भी जायें ,हकीक़त रो नहीं सकते

खवाबों का क्या कहना ,कहीं भी यह चल पड़ते
हकीक़त बड़ी नाज़ुक हैं लंबे सफर कर नहीं सकते

खवाबों में जज्बात बहुत रंगीन होते हैं
हकीक़त लाचार ,बेजुबान,गमगीन होते हैं

ख्वाब अगर हकीक़त होते तो कुछ अलग ही होता
रात के अरमानों का सफर , सुबह ख़त्म न होता

ख्वाब और हकीक़त मिल जायें तो दुनिया हसीं लगती हैं ,
दरमियान हो अगर इनमे , ज़िन्दगी सूनी और वीरान लगती हैं

हकीक़त मिटाया जा नहीं सकता,हूँ मैं बहुत मजबूर
ऐ ख्वाबों के हमसफ़र ले चल मुझे कहीं दूर

संदीप चटर्जी

Friday, February 6, 2009

स्पर्श

आँखों की गहराईयों में
छुपी कई कहानियाँ
आकर छुए तू तो
पलकों के पंख लेकर उड़ जायें

होंठ मानो ओश से कांपती
गुलाब की पंखुडियां
सूरज बनकर छुए तेरे होंठ
तो वो खुल जायें

हाथों में बंधी थीं
ये बेबस नरम उँगलियाँ
तेरे स्पर्श से बनी यह तूलिका
रंगरेज से जुड़ जायें

- संदीप चटर्जी